चिड़ियों सा चहकता हुआ करता था अपना आँगन
कितना खेली थी आपके साथ इस आँगन में पापा
अधूरा बचपन बीता आपके साथ इस आँगन में
वो खिलखिलाते दिन वो ठंडी रातें
दादी के साथ सवालों औऱ पहाड़ों में बीतती रातें
बहुत याद आती है आपकी जब जब भी जाती हूँ घर
दिल मे हूक सी उठाती हैं पापा आपकी यादें
वो दिन में सहेलियों संग वालिस्ता खेलना
गर्मी की छुट्टियों में बहनो संग महफ़िल जमाना
कितना सुहाना सा मंजर होता था उस आँगन में
मुझे याद है वो बिस्तर लगाना वहां
और भैया का वो डराना रातों में
कैसे दुबक जाती थी आके आपके बिस्तर में
क्यों चले गए यूँ छोड़ के बीच मे अपनी गुड्डा को
अब नही बैठती कोई भी चिड़िया उस आँगन में….

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