एक अनोखा पात्र…. (A Unique Character….)

एक अनोखा पात्र…. (A Unique Character….)

एक साधु ने एक सम्राट के द्वार पर दस्तक दी सुबह का समय था। और सम्राट बगीचे में घूमने निकला था। संयोग की बात है साधु को सामने ही सम्राट मिल गया।
साधु ने अपना पात्र उस के सामने कर दिया। सम्राट ने कहा क्या चाहते हो? साधु ने कहा कुछ भी दे दो “शर्त यही है,” कि मेरा पात्र पूरा भर जाए। मैं थक गया हूँ, यह पात्र कभी भरता ही नहीं। सम्राट हंसने लगा, और कहा तुम पागल मालुम होते हो। साधु ने कहा पागल न होते तो, साधु ही क्यों होते सम्राट । यह छोटा सा पात्र भरता ही नहीं? फिर सम्राट ने अपने वजीर से कहा लाओ इसे सोने की मोहरों से भर दो। और इस साधु का मुंह सदा के लिए बंद कर दो। साधु ने कहा मैं फिर याद दिला दूं कि भरने की कोशिश अगर आप करते हैं। तो शर्त यह है कि जब तक पात्र भरेगा नहीं मैं पीछे नहीं हटाऊंगा। सम्राट ने घमण्ड से कहा- तू घबरा मत ! इसे हम सोने से भर देंगे, हीरे जवाहरातों से भर देंगे। लेकिन जल्द ही सम्राट को अपनी भूल समझ में आ गई जब सोने की मोहरें डाली गईं और वह गुम हो गईं, हीरे डाले गये और वह भी खो गये। लेकिन सम्राट भी जिद्दी था, और फिर वह साधु से हार माने। यह भी तो उसे जचता नही था, इसलिए अपनी राजधानी में सूचना पहुंचाई। सूचना सुन कर हजारों लोग इकट्ठे हो गए, सम्राट अपना ख़जाना खाली करता चला गया। उस ने कहा आज दांव पर लग जाना हैं, सब डूबा दूंगा, मगर उस का पात्र भर कर ही रहूंगा। शाम हो गई सूरज ढलने लगा, सम्राट के कभी ना खाली होने वाले खजाने खाली हो गए, लेकिन पात्र नहीं भरा सो नहीं भरा, वह गिर पड़ा साधु के चरणों में और कहा मुझे क्षमा कर दो। मेरी अकड़ निकल दी आप ने, अच्छा किया। मैं तो सोचता था कि मेरे पास अक्षय खजाना है, लेकिन यह आप के छोटे से पात्र को भी न भर पाया। बस अब एक ही प्रार्थना है, मैं तो हार गया मुझे क्षमा कर दें। मैंने व्यर्थ ही आप को वचन दिया था आप का पात्र भरने का। मग़र जाने से पहले एक छोटी सी बात मुझे बताते जाओ। मेरे मन में बार बार यही प्रश्न उठेगा, कि यह पात्र क्या है। किस जादू से बना है, साधु हंसने लगा। उस ने कहा किसी जादू से नहीं ‘इसे आदमी के ह्रदय से बनाया गया है। ना आदमी का ह्रदय भरता है, और ना ही यह पात्र भरता है। इस जिंदगी में कोई और चीज तुम्हे छका नहीं सकेगी। तुम्हारा पात्र खाली का खाली रहेगा, कितना ही धन डालो इस में सब इस में खो जाएगा। यह पात्र खाली का खाली ही रहेगा, भरे नहीं भरता, ना कभी भरेगा, यह तो केवल परमात्मा से ही भरेगा। क्योंकि अनंत है हमारी प्यास, अनन्त है हमारा परमात्मा और अनंत को सिर्फ अनंत ही भर सकता है, और कोई नहीं।

शिक्षा….

इसलिए हमें किसी भी प्रकार का घमंड नहीं करना चाहिए। बस मालिक के आगे यही विनती करनी चाहिए कि मालिक जो तूने दिया है, उस के लिए तेरा शुक्र है। और उस का उपयोग मालिक के उन दुखी दीन बंधुओं के लिए करना चाहिए। अपना दिल बड़ा रखते हुए सब की मदद करें। तभी हम उस परमात्मा की खुशी हासिल कर पाएंगे। हर एक की सुनो, और हर एक से सीखो क्योंकि हर कोई, सब कुछ नही जानता। लेकिन हर एक कुछ ना कुछ जरुर जानता हैं! स्वभाव रखना है तो उस दीपक की तरह रखिये। जो सम्राट के महल में भी उतनी ही रोशनी देता है। जितनी की किसी गरीब की झोपड़ी में….

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समस्या के कारण जानने से मिलता है समाधान : महात्मा बुद्ध

समस्या के कारण जानने से मिलता है समाधान : महात्मा बुद्ध

एक दिन महात्मा बुद्ध जब प्रवचन हेतु पहुंचे तो उनके हाथ में एक रुमाल था| आसन पर बैठने के बाद उन्होंने रुमाल में थोड़ी-थोड़ी जगह छोड़कर पाँच गांठें लगा दी|
फिर बुद्ध ने शिष्यों से पूछा, ‘क्या यह वही रुमाल है जो गांठें लगने के समय के पहले था?’
एक विद्वान शिष्य ने कहा, ‘रुमाल तो वही है, क्योंकि इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है| दूसरी दृष्टि से देखें तो पहले इसमें पांच गांठें नहीं लगी थी, अतः रुमाल पहले जैसा नहीं रहा| जहां तक इसकी मूल प्रकृति का प्रश्न है, वह नहीं बदला है| इसका केवल बाहरी रूप बदला है, इसका पदार्थ और इसकी मात्रा वही है|’ (more…)


विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें

विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें

कालिदास :- माते पानी पिला दीजिए बड़ा पुण्य होगा.
स्त्री बोली :- बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं। अपना परिचय दो। मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।
कालिदास ने कहा :- मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।
स्त्री बोली :- तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।
कालिदास ने कहा :- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।
स्त्री बोली :- तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।
पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ? (more…)