अहसास के मोती जब अश्कों में नहाते हैं,

कुछ नर्म गुनाहों का मंदिर सा बनाते हैं,

नदियाँ हैं सरोवर हैं, बादल हैं, समंदर हैं,

लगता है की हम आसूं बेकार बहाते हैं|